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साड़ी

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 *साड़ी*  महज़ यह एक वस्त्र ही नहीं बल्कि भारतीय नारी का प्रतीक है, वाकई यह और कहीं दिखे ही नहीं, परंतु सुंदरता इसकी असीम है| माँ, दादी, नानी और बहन पहने इसे अलग-अलग तरीके से, लपेटते ही इसे, तहज़ीब आए सलीके से| छ्ह या नौ गज लंबी कहलाती ये साड़ी है, पर इसमे समाई यह अनंत दुनिया सारी है| हर साड़ी के पीछे छुपी एक सुंदर कहानी है, हो चाहे वो कांथा, लहरीया , तांत या जामदानी है| प्रत्येक स्त्री को इसे खरीदने में मिले खुशी अपार, चहरे पर ये लाये मुस्कान जब मिले यही उपहार| प्रकार इसके अनेक, जैसे चंदेरी, बांधणी, संभलपुरी या कलमकारी है, निखारे ये स्त्री सौंदर्य, इसकी सबको जानकारी है| बचपन गुज़रा इसी आँचल के साए, नन्हा बालक इसकी आड़ में ही ममता और स्नेह पाए| जवानी में मोहब्बत की छेड़-छाड़ करते आशिक "छोड़ दो आँचल" गाए, तो कोई इसके पल्लू का कोना फाड़कर ज़ख़्मो पर लगाएँ| विवाह में दुल्हन सजे, पहन कांजीवरम, बनारसी या पटोला, उस पल उसे लगे जैसे सामने हो कोई उड़नखटोला | बुढ़ापे में यही पौंछे कईयों के आँखों की नमी, और कभी न महसूस होने दे कोई भी कमी| इस पहनावे की हर वामा की प्रतिमा से है प्रेम और भक

CHAAT...the blissful experience

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Bliss!!!💕.. this makes me remember my hometown, Lucknow...CHAAT, the authenticity of this, remains constant here, throughout the metamorphosis of an individual🙂.. we've been eating the golgappas, tikki, papdi chaat, matar, dahi bhalle, samosas, khasta kachoris etc with utmost love in the pattals(bowls made out of dried leaves) .. the craving to eat these tangy/chatpati delicacies on the thhelas gave us immense pleasure....the skill of the chaatwala bhaiyya, counting the panipuris per plate of 'n' no.of people, used to amaze us..also made us wonder seeing him cater to the 'zyada meethha', 'medium spicy', ' bahaut teekha' requirements of the packed masses around...typically ending into a mandatory plain/masala puri🤣...  The sound of the spatula on the huge iron pan attracted us to the thhela, and the sight of the cooked golden crispy carbs tossing on it, in the dripping oil with chaat masala and aromatic spices sprinkled on it, was so mouth watering