साड़ी
*साड़ी*
महज़ यह एक वस्त्र ही नहीं बल्कि भारतीय नारी का प्रतीक है,
वाकई यह और कहीं दिखे ही नहीं, परंतु सुंदरता इसकी असीम है|
माँ, दादी, नानी और बहन पहने इसे अलग-अलग तरीके से,
लपेटते ही इसे, तहज़ीब आए सलीके से|
छ्ह या नौ गज लंबी कहलाती ये साड़ी है,
पर इसमे समाई यह अनंत दुनिया सारी है|
हर साड़ी के पीछे छुपी एक सुंदर कहानी है,
हो चाहे वो कांथा, लहरीया , तांत या जामदानी है|
प्रत्येक स्त्री को इसे खरीदने में मिले खुशी अपार,
चहरे पर ये लाये मुस्कान जब मिले यही उपहार|
प्रकार इसके अनेक, जैसे चंदेरी, बांधणी, संभलपुरी या कलमकारी है,
निखारे ये स्त्री सौंदर्य, इसकी सबको जानकारी है|
बचपन गुज़रा इसी आँचल के साए,
नन्हा बालक इसकी आड़ में ही ममता और स्नेह पाए|
जवानी में मोहब्बत की छेड़-छाड़ करते आशिक "छोड़ दो आँचल" गाए,
तो कोई इसके पल्लू का कोना फाड़कर ज़ख़्मो पर लगाएँ|
विवाह में दुल्हन सजे, पहन कांजीवरम, बनारसी या पटोला,
उस पल उसे लगे जैसे सामने हो कोई उड़नखटोला |
बुढ़ापे में यही पौंछे कईयों के आँखों की नमी,
और कभी न महसूस होने दे कोई भी कमी|
इस पहनावे की हर वामा की प्रतिमा से है प्रेम और भक्ति,
द्रौपदी को भी आपत्ति में इसने प्रदान की एक अजब शक्ति|
नारित्व कायम रखकर खूब लड़ी मर्दानी,
जब साड़ी पहन मैदान में उतरी, बलवान व प्रभावी झाँसी वाली रानी|
पसंद हमें तो सभी हैं, ख़ासकर पैठणी, गढ़वाल और चिकनकारी है,
मगर करघे से निकली हर साड़ी की बात ही कुछ निराली है|
……….देवयानी औटी (रानी)
Hey Rani you have penned down so well. Please keep on writing. I would love to read it and take some inspiration from it.
ReplyDelete.
Beautifully written. I'm also a saree fan, so can relate to it..
ReplyDeleteWell spelt. Each Saree has its own tale of grace.
ReplyDeleteभारतीय नारी की गरीमा उसके साडी मे जीवन के हर दौर मे है यह बहुत सुंदर लिखा है ! ऐसै हि लिखते रहो ! आशिर्वाद !
ReplyDeleteWell said....
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